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महर्षि गौतम का जीवन परिचय

महर्षि गौतम कौन थे?

महर्षि गौतम कौन थे? इस प्रश्न का ठीक-ठीक उत्तर देना कठिन है। सप्तर्षियों में शामिल महर्षि गौतम का उल्लेख कृतयुग से लेकर कलियुग तक मिलता है।

गौतम का उल्लेख ऋग्वेद में अनेक बार हुआ है, किन्तु किसी ऋचा के रचयिता के रूप में नहीं। यह स्पष्ट है कि उनका सम्बन्ध आंगिरसों से था, क्योंकि गोतम प्रायः उनका उल्लेख करते है । ॠग्वेद की एक ऋचा में इनका पितृवाचक ‘राहुगण’ शब्द आया है। शतपथ ब्राह्मण में इन्हें विदेह जनक एव याज्ञवल्क्य का समकालीन एवं एक सूक्त का रचयिता कहा गया है। अथर्ववेद के दो परिच्छेदों में भी इनका उल्लेख है।

गौतम और अहल्या की पौराणिक कथा प्रसिद्ध है। मिथिला प्रान्त में दरभंगा के निकट अहल्या-स्थान है। यहाँ आज भी लोग गौतमकुण्ड और अहल्याकुण्ड में स्नान कर अपने को पवित्र मानते हैं। कहा जाता है कि रामचन्द्रजी इसी रास्ते जनकपुर गये थे। जनकपुर जाते हुए राम जी ने अहिल्या का उद्धार किया था। अहिल्या उद्धार की यह कथा लोक प्रसिद्ध है।

महर्षि गौतम की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर ही भगवान महादेव ब्रह्मगिरि क्षेत्र में त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हुए तथा गंगा का दक्षिण भारत में अवतरण संभव हो सका। गंगा दक्षिण भारत में आज गौतमी गंगा या गोदावरी के नाम से जानी जाती है। महर्षि गौतम न्याय शास्त्र के प्रवर्तक रहे हैं।

महर्षि गौतम का जीवन परिचय

पिता का नाम – दीर्घतम या राहुगण
वंश का नाम – आंगिरस वंश (भारद्वाज ऋषि का संबंध इसी वंश से है।)
महर्षि गौतम के अन्य नाम – अक्षपाद या अक्षचरण, मेधातिथि
पत्नी का नाम – अहिल्या या अहल्या
पुत्र का नाम – वामदेव, नोवस, वाजश्रवस्, शतानन्द, शरद्वान
पुत्री का नाम – विजया, अंजनी
आश्रम – मिथिला / ब्रह्मगिरि
वंशज – हनुमान जी, कृपाचार्य
रचित पुस्तकें – न्यायसूत्र वैदिकवृत्ति, न्याय धर्मसूत्र, न्यायदर्शनम्
योगदान – न्याय दर्शन के आदि प्रवर्तक, त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की
स्थापना और दक्षिण भारत में गंगा अवतरण का श्रेय।